कुते येषां त्वया कर्म कृतं श्वभ्रादिसाधकम्‌ ।
त्वामेव यान्ति ते पापा वञ्चयित्वा यथायथम्‌ ॥27॥
अन्वयार्थ : हे आत्मन्‌ ! निज कुटुंबादिक के लिए तूने नरकादिक के दुःख देनेवाले पापकर्म किये, वे पापी तुझे अवश्य ही धोखा देकर अपनी-अपनी गति को चले जाते हैं । उनके लिये तूने जो पापकर्म किये थे, उनके फल तुझे अकेले ही भोगने पड़ेंगे ।

  वर्णीजी