यद्वद्देशान्तरादेत्य वसन्ति विहगा नगे ।
तथा जन्मान्तरान्मूढ प्राणिन: कुलपादपे ॥30॥
अन्वयार्थ : जैसे पक्षी नाना देशों से आ-आकर संध्या के समय वृक्षों पर बसते हैं, वैसे ही ये प्राणीजन अन्यान्य जन्मों से आ-आकर कुलरूपी वृक्षों पर बसते (जन्म लेते) हैं ।

  वर्णीजी