गीयते यत्र सानन्दं पूर्वाह्ने ललितं गृहे ।
तस्मिन्नेव हि मध्याह्ने सदुःखमिह रुद्यते ॥32॥
यस्य राज्याभिषेकश्री: प्रत्यूषेऽत्र विलोक्यते ।
तस्मिन्नहनि तस्यैव चिताधूमश्च दृश्यते ॥33॥
अन्वयार्थ : जिस घर में प्रभात के समय आनन्दोत्साह के साथ सुंदर-सुंदर मांगलिक गीत गाये जाते हैं, मध्याह्न के समय उसी घर में दुःख के साथ रोना सुना जाता है । तथा
प्रभात के समय जिसके राज्याभिषेक की शोभा देखी जाती है, उसी दिन उस राजा की चिता का धुआँ देखने में आता है । यह संसार की विचित्रता है ।

  वर्णीजी