
अत्र जन्मनि निर्वृत्तं यैः शरीरं तवाणुभि: ।
प्राक्तनान्यत्र तैरेव खण्डितानि सहस्त्रश: ॥34॥
अन्वयार्थ : हे आत्मन् ! इस संसार में जिन परमाणुओं से तेरा यह शरीर रचा गया है, उन्हीं परमाणुओं ने इस शरीर से पहिले तेरे हजारों शरीर खंड-खंड किये हैं ।
वर्णीजी