शरीरत्वं न ये प्राप्ता आहारत्वं॑ न येऽणव: ।
भ्रमतस्ते चिरं भ्रातर्यन्न ते सन्ति तद्गृहे ॥35॥
अन्वयार्थ : हे भाई ! तेरे इस संसार में बहुत काल से भ्रमण करते हुए जो परमाणु शरीरता को तथा आहारता को प्राप्त नहीं हुए, ऐसे बचे हुए परमाणु कोई भी नहीं हैं ।

  वर्णीजी