वर्णीजी
गलत्येवायुरव्यग्रं हस्तन्यस्ताम्बुवत्क्षणे ।
नलिनीदलसंक्रान्तं प्रालेयमिव यौवनम् ॥39॥
अन्वयार्थ :
जीवों का आयुर्बल तो अञ्जलि के जल समान क्षण-क्षण में निरंतर झरता है और यौवन कमलिनी के पत्र पर पड़े हुए जलबिंदु के समान तत्काल ढलक जाता है ।
वर्णीजी