
मनोज्ञविषयै: सार्द्धं संयोगा: स्वप्नसन्निभा: ।
क्षणादेव क्षयं यान्ति वञ्चनोद्धतबुद्धय: ॥40॥
अन्वयार्थ : जीवों के मनोज्ञ विषयों के साथ संयोग स्वप्न के समान हैं, क्षणमात्र में नष्ट हो जाते हैं । जिनकी बुद्धि ठगने में उद्यत है, ऐसे ठगों की भाँति ये किंचित्काल चमत्कार दिखाकर फिर सर्वस्व हरनेवाले हैं ।
वर्णीजी