
घनमालानुकारीणि कुलानि च बलानि च ।
राज्यालङ्कारवित्तानि कीर्त्तितानि महर्षिभि: ॥41॥
अन्वयार्थ : महर्षियों ने जीवों के कुल-कुटुंब, बल, राज्य, अलंकार, धनादिकों को मेघ-पटलों के समूह समान देखते-देखते विलुप्त होनेवाले कहे हैं । यह मूढ़ प्राणी वृथा ही नित्य की बुद्धि करता है ।
वर्णीजी