
यातायातानि कुर्वन्ति ग्रहचन्द्रार्कतारका: ।
ऋतवश्च शरीराणि न हि स्वप्नेऽपि देहिनाम् ॥43॥
अन्वयार्थ : इस लोक में ग्रह, चन्द्र, सूर्य, तारे तथा छह ऋतु आदि सब ही जाते और आते हैं , परन्तु जीवों के गये हुए शरीर स्वप्न में भी कभी लौटकर नहीं आते । यह प्राणी वृथा ही इनसे प्रीति करता है ।
वर्णीजी