ये जाता: सातरूपेण पुद्गला: प्राङ्मनःप्रिया: ।
पश्य पुंसां समापन्ना दुःखरूपेण तेऽधुना ॥44॥
अन्वयार्थ : हे आत्मन्‌ ! इस जगत में पुद्गल-स्कन्ध पहिले जिन पुरुषों के मन को प्रिय और सुख के देनेवाले उपजे थे, वे ही अब दुःख के देनेवाले हो गये हैं, उन्हें देख (जगत में ऐसा कोई भी नहीं हैं जो शाश्वत सुखरूप ही रहता हो)

  वर्णीजी