
समापतति दुर्वारे यमकण्ठीरवक्रमे ।
त्रायते तु नहि प्राणी सोद्योगैस्त्रिदशैरपि ॥2॥
अन्वयार्थ : जब यह प्राणी दुनिर्वार कालरूपी सिंह के पाँव तले आ जाता है, तब उद्यमशील देवगण भी इसकी रक्षा नहीं कर सकते हैं; अन्य मनुष्यादिकों की तो क्या सामर्थ्य है
कि, रक्षा कर सकें ।
वर्णीजी