जगत्त्रयजयी वीर एक एवान्तक: क्षणे ।
इच्छामात्रेण यस्यैते पतन्ति त्रिदशेश्वरा: ॥4॥
अन्वयार्थ : यह काल तीन-जगत को जीतनेवाला अद्वितीय सुभट है, क्योंकि इसकी इच्छा-मात्र से देवों के इन्द्र भी क्षणमात्र में गिर पड़ते हैं (स्वर्गसे च्युत हो जाते हैं) फिर
अन्य की कथा ही क्‍या है ?

  वर्णीजी 




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