वर्णीजी
वर्णीजी
यस्मिनसंसारकान्तारे यमभोगीन्द्रसेविते ।
पुराणपुरुषा: पूर्वमनन्ता: प्रलयं गता: ॥6॥
अन्वयार्थ :
कालरूप सर्प से सेवित संसाररूपी वन में पूर्वकाल में अनेक पुराण-पुरुष
(शलाका-पुरुष)
प्रलय को प्राप्त हो गये, उनका विचारकर शोक करना वृथा है ।
वर्णीजी
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