
यथा बालं तथा वृद्धं यथाढ्यं दुर्विध तथा ।
यथा शूरं तथा भीरुं साम्येन ग्रसतेऽन्तक: ॥11॥
अन्वयार्थ : यह काल जैसे बालक को ग्रसता है, तैसे ही वृद्ध को भी ग्रसता है और जैसे धनाढ्य पुरुष को ग्रसता है उसी प्रकार दरिद्र को भी ग्रसता है तथा जैसे शूरवीर को ग्रसता है उसी प्रकार कायर को भी ग्रसता है एवं इस प्रकार जगत के सब ही जीवों को समान भाव से ग्रसता है किसी में भी इसका हीनाधिक विचार नहीं है, इसी कारण से इसका एक नाम समवर्त्ती भी है ॥११॥
वर्णीजी