विक्रमैकरसस्तावज्जन: सर्वोऽपि वल्गति ।
न शृणोत्यदयं यावत्कृतान्तहरिर्गिजतम् ॥13॥
अन्वयार्थ : पराक्रम ही है अद्वितीय रस जिसके, ऐसा यह मनुष्य तब तक ही उद्धत होकर दौड़ता कूदता है जब तक कि कालरूपी सिंह की गर्जना का शब्द नहीं सुनता अर्थात् 'तेरी मौत आ गई' ऐसा शब्द सुनते ही सब खेलकूद भूल जाता है ॥१३॥

  वर्णीजी