
अकृताभीष्टकल्याणमसिद्धारब्धवाञ्छितम् ।
प्रागेवागत्य निस्त्रिंशो हन्ति लोकं यम: क्षणे ॥14॥
अन्वयार्थ : यह काल ऐसा निर्दयी है कि जिन्होंने अपना मनोवांछित कल्याणरूप कार्य नहीं किया है और न अपने प्रारम्भ किये हुये कार्यों को पूर्ण कर पाये, ऐसे लोगों को यह सबसे पहले आकर तत्काल मार डालता है। लोगों के कार्य जैसे के तैसे अधूरे ही धरे रह जाते हैं ॥१४॥
वर्णीजी