(शार्दूलविक्रीडितम्)
रुद्राशागजदेवदैत्यखचरग्राहग्रहव्यन्तरा -
दिक्पाला: प्रतिशत्रवो हरिबला व्यालेन्द्रचक्रेश्वरा: ।
ये चान्ये मरुदर्यमादिबलिन: संभूय सर्वे स्वयम्
नारब्धं यमकिङ्करै: क्षणमपि त्रातुं क्षमा देहिनम् ॥16॥
अन्वयार्थ : रुद्र, दिग्गज देव, दैत्य, विद्याधर, जलदेवता, ग्रह, व्यन्तर, दिक्पाल, नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र, धरणीन्द्र, चक्रवर्ती तथा पवन देव, सूर्यादि बलिष्ठ देहधारी सब एकत्र होकर भी काल के किंकर-स्वरूप काल की कला से आरम्भ किये अर्थात् पकड़े हुए प्राणी को क्षणमात्र भी रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं ।

  वर्णीजी