कल्पेषु च विमानेषु निकायेष्वितरेषु च ।
निर्विशन्ति सुखं दिव्यमासाद्य त्रिदिवश्रियम् ॥4॥
अन्वयार्थ : और वहाँ देवगति में कल्पवासियों के विमानों में तथा भवनवासी, ज्योतिषी तथा व्यन्तरदेवों में उनकी लक्ष्मी पाकर देवोपनीत सुखों को भोगता है ॥४॥

  वर्णीजी