विडम्बयत्यसौ हन्त संसार: समयान्तरे ।
अधमोत्तमपर्यायैर्नियोज्य प्राणिनां गणम् ॥6॥
अन्वयार्थ : देखो! यह संसार जीवों के समूह को समयान्तर में ऊँची-नीची पर्यायों से जोड़कर विडम्बनारूप करता है और जीव के स्वरूप को अनेक प्रकार से बिगाड़ता है ॥६॥

  वर्णीजी