
स्वर्गी पतति साक्रन्दं श्वा स्वर्गमधिरोहति ।
श्रोत्रिय: सारमेय: स्यात् कृमिर्वा श्वपचोऽपि वा ॥7॥
अन्वयार्थ : अहो! देखो! स्वर्ग का देव तो रोता पुकारता स्वर्ग से नीचे गिरता है और कुत्ता स्वर्ग में जाकर देव होता है एवं श्रोत्रिय अर्थात् क्रियाकाण्ड का अधिकारी अस्पृष्ट रहने वाला ब्राह्मण मर कर कुत्ता, कृमि अथवा चाण्डाल आदि हो जाता है। इस प्रकार इस संसार की विडम्बना है ॥७॥
वर्णीजी