
सुतीव्रासातसंतप्ता: मिथ्यात्वातङ्कतकिंता: ।
पञ्चधा परिवर्त्तंते प्राणिनो जन्मदुर्गमे ॥9॥
अन्वयार्थ : इस संसाररूपी दुर्गम वन में संसारी जीव मिथ्यात्वरूपी रोग से शंकित अतिशय तीव्र असातावेदनीय से दु:खित होते हुए पाँच प्रकार के परिवर्तनों में भ्रमण करते रहते हैं ॥९॥
वर्णीजी