द्रव्यक्षेत्रे तथा कालभवभावविकल्पत: ।
संसारो दु:खसंकीर्ण: पञ्चधेति प्रपञ्चित: ॥10॥
अन्वयार्थ : द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव तथा भाव के भेद से संसार पाँच प्रकार के विस्ताररूप दु:खों से व्याप्त कहा गया है। इन पाँच प्रकार के परिवर्तनों का स्वरूप विस्तारपूर्वक अन्य ग्रन्थों से जानना ॥१०॥

  वर्णीजी