
सर्वै: सर्वेऽपि सम्बन्धा: संप्राप्ता देहधारिभि: ।
अनादिकालसंभ्रान्तैस्त्रसस्थावरयोनिषु ॥11॥
अन्वयार्थ : इस संसार में अनादिकाल से त्रस-स्थावर योनियों में फिरते हुए जीवों ने समस्त जीवों के साथ पिता, पुत्र, भ्राता, माता, पुत्री, स्त्री आदिक सम्बन्ध अनेक बार पाये हैं । ऐसा कोई भी जीव या सम्बन्ध बाकी नहीं रहा, जो इस जीव ने न पाया हो ॥११॥
वर्णीजी