
माता पुत्री स्वसा भार्या सैव संपद्यतेऽङ्गजा ।
पिता पुत्र: पुन: सोऽपि लभते पौत्रिकं पदम् ॥16॥
अन्वयार्थ : इस संसार में प्राणी की माता तो मरकर पुत्री हो जाती है और बहन मर कर स्त्री हो जाती है और फिर वही स्त्री मरकर आपकी पुत्री भी हो जाती है। इसी प्रकार पिता मर कर पुत्र हो जाता है तथा फिर वही मरकर पुत्र का पुत्र हो जाता है। इस प्रकार परिवर्तन होता ही रहता है ॥१६॥
वर्णीजी