
एकत्वं किं न पश्यन्ति जडा जन्मग्रहार्दिता: ।
यज्जन्ममृत्युसम्पाते प्रत्यक्षमनुभूयते ॥7॥
अन्वयार्थ : ये मूर्ख प्राणी संसाररूपी पिशाच से पीड़ित होते हुए भी अपनी एकता को क्यों नहीं देखते, जिसे जन्म मरण के प्राप्त होने पर सब ही जीव प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं ।
वर्णीजी