
अज्ञातस्वस्वरूपोऽयं लुप्तबोधादिलोचन: ।
भ्रमत्यविरतं जीव एकाकी विधिवञ्चित: ॥8॥
अन्वयार्थ : यह जीव अपने अकेलेपन को नहीं देखता है इसका कारण यह है कि, ज्ञानादि नेत्रों के लुप्त होने से यह अपने स्वरूप को भले प्रकार नहीं जानता है और इसी कारण से कर्मों से ठगाया हुआ यह जीव एकाकी ही इस संसार में भ्रमण करता है।
वर्णीजी