वर्णीजी
इह मूर्त्तमम्-र्त्तेन चलेनात्यन्तनिश्चलम् ।
शरीरमुह्यते मोहाच्चेतनेनास्तचेतनम् ॥3॥
अन्वयार्थ :
इस जगत में मोह के कारण अर्मूितक और चलने वाले जीव को यह मूर्तिक अतिनिश्चल चेतनारहित जड़ शरीर अपने साथ-साथ लगाये रहना पड़ता है।
वर्णीजी