अणुप्रचयनिष्पन्नं शरीरमिदमङ्गिनाम् ।
उपयोगात्मकोऽत्यक्ष: शरीरी ज्ञानविग्रह: ॥4॥
अन्वयार्थ : जीवों का यह शरीर पुद्गल परमाणुओं के समूह से बना है और शरीरी (आत्मा) उपयोगमयी है और अतीन्द्रिय है। यह इन्द्रियगोचर नहीं है तथा इसका ज्ञान ही शरीर है। शरीर और आत्मा में इस प्रकार अत्यन्त भेद है ॥४॥

  वर्णीजी