
मूर्तैर्विचेतनैश्चित्रै: स्वतन्त्रै: परमाणुभि: ।
यद्वपुर्विहितं तेन क: सम्बन्धस्तदात्मन: ॥6॥
अन्वयार्थ : मूर्तिक चेतनारहित नाना प्रकार के स्वतन्त्र पुद्गल परमाणुओं से जो शरीर रचा गया है उससे और आत्मा से क्या सम्बन्ध है ? विचारो! इसका विचार करने से कुछ भी सम्बन्ध नहीं है, ऐसा प्रतिभास होगा ॥६॥
वर्णीजी