
पुत्रमित्रकलत्राणि वस्तूनि च धनानि च ।
सर्वथाऽन्यस्वभावानि भावय त्वं प्रतिक्षणम् ॥9॥
अन्वयार्थ : हे आत्मन्! इस जगत में पुत्र, मित्र, स्त्री आदि अन्य वस्तुओं की तू निरन्तर सर्व प्रकार से अन्य स्वभाव भावना कर, इनमें एकपने की भावना कदापि न कर, ऐसा उपदेश है ॥९॥
वर्णीजी