अन्य: कश्चिद्भवेत्पुत्र: पितान्य: कोऽपि जायते ।
अन्येन केनचित्साद्र्धं कलत्रेणानुयुज्यते ॥10॥
अन्वयार्थ : इस जगत में कोई अन्य जीव ही तो पुत्र होता है और अन्य ही पिता होता है और किसी अन्य जीव के साथ ही स्त्री सम्बन्ध होता है। इस प्रकार सब ही सम्बन्ध भिन्न-भिन्न जीवों से होते हैं ॥१०॥

  वर्णीजी