
निसर्गमलिनं निन्द्यमनेकाशुचिसम्भृतम् ।
शुक्रादिबीजसम्भूतं घृणास्पदमिदं वपु: ॥1॥
अन्वयार्थ : इस संसार में जीवों का जो शरीर है, वह प्रथम तो स्वभाव से ही मलिन रूप है, निंद्य है तथा अनेक धातु-उपधातुओं से भरा हुआ है एवं शुक्र रुधिर के बीज से उत्पन्न हुआ है, इस कारण ग्लानि का स्थान है ॥१॥
वर्णीजी