कृमिजालशताकीर्णे रोगप्रचयपीडिते ।
जराजर्जरिते काये कीदृशी महतां रति: ॥4॥
अन्वयार्थ : यह शरीर लट कीड़ों के सैकड़ों समूहों से भरा हुआ रोगों के समूह से पीड़ित तथा वृद्धावस्था से जर्जरित है। ऐसे शरीर में महन्त पुरुषों की रति (प्रीति) कैसे हो ? ॥४॥

  वर्णीजी