यदीदं शोध्यते दैवाच्छरीरं सागराम्बुभि: ।
दूषयत्यपि तान्येवं शोध्यमानमपि क्षणे ॥6॥
अन्वयार्थ : यदि इस शरीर को दैवात् समुद्र के जल से भी शुद्ध किया जाय तो उसी क्षण समुद्र के जल को भी यह अशुद्ध (मैला) कर देता है। अन्य वस्तु को अपवित्र कर दे, तो आश्चर्य ही क्या ? ॥६॥

  वर्णीजी