सर्वदैव रुजाक्रान्तं सर्वदैवाशुचेर्गृहम् ।
सर्वदा पतनप्रायं देहिनां देहपञ्जरम् ॥8॥
अन्वयार्थ : इन जीवों का देहरूपी पिनजरा सदा ही रोगों से व्याप्त, सर्वदा अशुद्धताओं का घर और सदा ही पतन होने के स्वभाव वाला है। ऐसा कभी मत समझो कि किसी काल में यह उत्तम और पवित्र होता होगा ॥८॥

  वर्णीजी