
तैरेव फलमेतस्य गृहीतं पुण्यकर्मभि: ।
विरज्य जन्मन: स्वार्थे यै: शरीरं कदर्थितम् ॥9॥
अन्वयार्थ : इस शरीर के प्राप्त होने का फल उन्हीं ने लिया जिन्होंने संसार से विरक्त होकर इसे अपने आत्मकल्याण के मार्ग में लगाकर पुण्य कर्मों से क्षीण किया ॥९॥
वर्णीजी