भवोद्भवानि दु:खानि यानि यानीह देहिभि: ।
सह्यन्ते तानि तान्युच्चैर्वपुरादाय केवलम् ॥11॥
अन्वयार्थ : इस जगत में संसार से (जन्म मरण से) उत्पन्न जो-जो दु:ख जीवों को सहने पड़ते हैं वे सब केवल इस शरीर के ग्रहण से ही सहने पड़ते हैं । इस शरीर से निवृत्त (मुक्त) होने पर फिर कोई भी दु:ख नहीं है ॥११॥

  वर्णीजी