(आर्या)
कर्पूरकुंकुमागुरुमृगमदहरिचन्दनादिवस्तूनि ।
भव्यान्यपि संसर्गान्मलिनयति कलेवरं नृणाम् ॥12॥
अन्वयार्थ : कर्पूर, केशर, अगर, कस्तूरी, हरिचंदनादि सुन्दर-सुन्दर पदार्थों को भी यह मनुष्यों का शरीर संसर्ग मात्र से ही अर्थात् लगाते ही अशुद्ध (मैले) कर देता है।

  वर्णीजी