यमप्रशमनिर्वेदतत्त्वचिन्तावलम्बितम् ।
मैत्र्यादिभावनारूढं मन: सूते शुभास्रवम् ॥3॥
अन्वयार्थ : यम (अणुव्रत-महाव्रत), प्रशम (कषायों की मंदता), निर्वेद (संसार से विरागता अथवा धर्मानुराग) तथा तत्त्वों का चिन्तवन इत्यादि का अवलंबन हो एवं मैत्री, प्रमोद, कारुण्य और माध्यस्थ इन चारों भावों की जिस मन में भावना हो, वही मन शुभास्रव को उत्पन्न करता है ॥३॥

  वर्णीजी