कषायदहनोद्दीप्तं विषयैर्व्याकुलीकृतम् ।
सञ्चिनोति मन: कर्म जन्मसम्बन्धसूचकम् ॥4॥
अन्वयार्थ : कषायरूप अग्नि से प्रज्वलित और इन्द्रियों के विषयों से व्याकुल मन संसार के सम्बन्ध के सूचक अशुभ कर्मों का संचय करता है ॥४॥

  वर्णीजी