वर्णीजी
विश्वव्यापारनिर्मुत्तं श्रुतज्ञानावलम्बितम् ।
शुभास्रवाय विज्ञेयं वच: सत्यं प्रतिष्ठितम् ॥5॥
अन्वयार्थ :
समस्त विश्व के व्यापारों से रहित और श्रुतज्ञान के अवलम्बनयुक्त और सत्यरूप प्रामाणिक वचन शुभास्रव के लिये होते हैं ॥५॥
वर्णीजी