
अपवादास्पदीभूतमसन्मार्गोपदेशकम् ।
पापास्रवाय विज्ञेयमसत्यं परुषं वच: ॥6॥
अन्वयार्थ : अपवाद का स्थान, असन्मार्ग का उपदेशक, असत्य, कठोर, कानों से सुनते ही जो दूसरे के कषाय उत्पन्न कर दे और जिससे पर का बुरा हो जाए, ऐसे वचन अशुभास्रव के कारण होते हैं ॥६॥
वर्णीजी