वर्णीजी
सर्वास्रवनिरोधो य: संवर: स प्रकीर्तित: ।
द्रव्यभावविभेदेन स द्विधा भिद्यते पुन: ॥1॥
अन्वयार्थ :
समस्त आस्रवों के निरोध को संवर कहा है। वह द्रव्यसंवर तथा भावसंवर के भेद से दो प्रकार का है ॥१॥
वर्णीजी