या संसारनिमित्तस्य क्रियाया विरति: स्फुटम् ।
स भावसंवरस्तज्ज्ञैर्विज्ञेय: परमागमात् ॥3॥
अन्वयार्थ : संसार के कारणस्वरूप कर्म ग्रहण की क्रिया की विरति अर्थात् अभाव को भावसंवर कहते हैं, यह निश्चित है ऐसा उक्त भावसंवर के ज्ञाताओं को परमागम से जानना चाहिये ॥३॥

  वर्णीजी