
रागद्वेषौ समत्वेन निर्ममत्वेन वाऽनिशम् ।
मिथ्यात्वं दृष्टियोगेन निराकुर्वन्ति योगिन: ॥7॥
अन्वयार्थ : जो योगी ध्यानी मुनि हैं वे निरन्तर समभावों से अथवा निर्ममत्व से राग द्वेष का निराकरण करते रहते हैं तथा सम्यग्दर्शन के योग से मिथ्यात्वरूप भावों को नष्ट कर देते हैं ॥७॥
वर्णीजी