अविद्याप्रसरोद्भूतं तमस्तत्त्वावरोधकम् ।
ज्ञानसूर्यांशुभिर्बाढं स्फेटयन्त्यात्मदर्शिन: ॥8॥
अन्वयार्थ : आत्मा को अवलोकन करने वाले मुनिगण अविद्या के विस्तार से उत्पन्न और तत्त्वज्ञान को रोकने वाले अज्ञानरूपी अंधकार को ज्ञानरूपी सूर्य की किरणों से अतिशय दूर कर देते हैं ॥८॥

  वर्णीजी