असंयमगरोद्गारं सत्संयमसुधाम्बुभि: ।
निराकरोति नि:शंकं संयमी संवरोद्यत: ॥9॥
अन्वयार्थ : संवर करने में तत्पर संयमी और नि:शंक मुनि असंयमरूपी विष के (जहर के) उद्गार को संयमरूपी अमृतमयी जलों से दूर कर देते हैं ॥९॥

  वर्णीजी