(मालिनी)
सकलसमितिमूल: संयमोद्दामकाण्ड:
प्रशमविपुलशाखो धर्मपुष्पावकीर्ण: ।
अविकलफलबन्धैर्बन्धुरो भावनाभि-
र्जयति जितविपक्ष: संवरोद्दामवृक्ष: ॥13॥
अन्वयार्थ : ईर्या समिति आदि पाँच समितियाँ ही हैं मूल अर्थात् जड़ जिसकी, सामायिक आदि संयम ही हैं स्कन्ध जिसके और प्रशमरूप (विशुद्धभावरूप) बड़ी-बड़ी शाखा वाले उत्तम क्षमा आदि दस धर्म हैं पुष्प जिसके तथा मजबूत अविकल हैं फल जिसमें, ऐसा बारह भावनाओं से सुन्दर यह संवररूपी महावृक्ष सर्वोपरि है ॥१३॥
(दोहा)
निजस्वरूप में लीनता, निश्चय संवर जानि ।
समिति-गुप्ति-संयम धरम, करें पाप की हानि ॥८॥

  वर्णीजी