वर्णीजी
यया कर्माणि शीर्यन्ते बीजभूतानि जन्मन: ।
प्रणीता यमिभि: सेयं निर्जरा जीर्णबन्धनै: ॥1॥
अन्वयार्थ :
नर्जरा से जीर्ण हो गये हैं कर्मबन्ध जिनके ऐसे मुनिजन, जिससे संसार के बीजरूप कर्म गल जाते हैं व झड़ जाते हैं, उसे निर्जरा कहते हैं ॥१॥
वर्णीजी