
सकामाकामभेदेन द्विधा सा स्याच्छरीरिणाम् ।
निर्जरा यमिनां पूर्वा ततोऽन्या सर्वदेहिनाम् ॥2॥
अन्वयार्थ : यह निर्जरा जीवों को सकाम और अकाम दो प्रकार की होती है। इनमें से पहली सकाम निर्जरा तो मुनियों को होती है और दूसरी अकाम निर्जरा समस्त जीवों को होती है इससे अर्थात् अकाम निर्जरा से बिना तपश्चरणादि के स्वयमेव निरन्तर ही कर्म उदय रस देकर क्षरते रहते हैं ॥२॥
वर्णीजी